۴ آذر ۱۴۰۳ |۲۲ جمادی‌الاول ۱۴۴۶ | Nov 24, 2024
शरई अहकाम

हौज़ा / जिस आदमी को भरोसा हो कि रोज़ा रखना उसके लिए हानिकारक नहीं है, वह रोज़ा रखले और मग़रिब के बाद इसे पता चले की रोज़ा रखना उसके लिए ऐसा हानिकारक था कि जिसकी परवाह की जाती तो( एहतेयात ए लाज़िम) की बिना पर उस रोज़े की कज़ा करना ज़रूरी है।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,शरई अहकाम:

सवाल: जिस आदमी को भरोसा हो कि रोज़ा रखना उसके लिए हानिकारक नहीं है, वह रोज़ा रख ले और बाद में उसे पता चले कि रोज़ा रखना उसके लिए हानिकारक था तो क्या हुक्म है?

जवाब : जिस आदमी को भरोसा हो कि रोज़ा रखना उसके लिए हानिकारक नहीं है, वह रोज़ा रखले और मग़रिब के बाद इसे पता चले की रोज़ा रखना उसके लिए ऐसा हानिकारक था कि जिसकी परवाह की जाती तो( एहतेयात ए लाज़िम) की बिना पर उस रोज़े की कज़ा करना ज़रूरी है।

हज़रत आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली सिस्तानी:

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